राम मंदिर की नींव में डाला जायेगा जानकारियों से भरा “टाइम कैप्सूल”

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राम मंदिर टाइम कैप्सूल

राम मदिर के संघर्ष से जुड़े सभी ऐतिहासिक तथ्यों को एक टाइम कैप्सूल यानी काल पात्र में भरकर पृथ्वी के 2000 फीट भीतर गाड़ा जाएगा, ताकि सभी जानकारियां सुरक्षित रहें।

टाइम कैप्सूल क्या होता है?

टाइम कैप्सूल एक बॉक्स होता है, जिसमें वर्तमान समय की जानकारियां भरी जाती हैं। इसमें देश का नाम, जनसख्या, धर्म, परंपराएं, वैज्ञानिक अविष्कारों की जानकारी और कई अन्य वस्तुएं और रिकॉर्डिंगें डाली जाती हैं। इसके बाद, कैप्सूल को कांक्रीट के आवरण में पैक कर जमीन के बहुत गहराई में गाड़ दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि सैकड़ों-हजारों वर्षों बाद, जब किसी अन्य सभ्यता को यह कैप्सूल मिलेगी, तो वह यह जान सकेगी कि उस प्राचीन काल में मनुष्य कैसे रहता था, कैसी भाषाएं बोलता था। टाइम कैप्सूल की अवधारणा मानव की प्राचीन इच्छा का ही प्रतिबिंब है।

पाषाण युग से ही मानव की सोच रही है कि वह भले ही मिट जाए, लेकिन उसके कार्यों को आने वाली पीढ़ियों ने याद रखा है। इसी सोच ने मानव को इतिहास लेखन के लिए प्रेरित किया होगा। जब किसी प्राचीन गुफा की खोज होती है, तो उसकी दीवारों पर हज़ारों वर्ष पुराने शैलचित्र पाए जाते हैं। ये भी एक तरह के टाइम कैप्सूल हैं, जो एक ख़ास तरह की स्याही से दीवारों पर उकेरे गए थे।

उनकी स्याही में इतना दम था कि हज़ारों वर्षों पश्चात् भी उनकी कहानी पढ़ाई जा सकती थी। भारत के प्राचीन मंदिरों में स्थापित शिलालेखों का उद्देश्य यही था, जो आधुनिक काल में टाइम कैप्सूल बनाने वालों का है।

क्या-क्या रखा जाएगा राम मंदिर के टाइम कैप्सूल में?

इस ताम्र पत्र पर मंदिर का संक्षिप्त इतिहास, शिलान्यास की तारीख, भूमिपूजन करने वाले मुख्य अतिथि, उपस्थित विशिष्टजन का नाम, निर्माण की शैली तथा वास्तुविद का नाम लिखा रहेगा। ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार, ताम्र लेख तैयार करने की जिम्मेदारी एक दिल्ली कंपनी को सौंपी गई है।

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क्या है भारत में टाइम कैप्सूल का इतिहास?

भारत में टाइम कैप्सूल का इतिहास ज़्यादा पुराना नहीं है। आज़ादी के 25 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के रूप में 25 वर्षों की उपलब्धियों और संघर्षों को बयां करने के लिए लाल क़िले में एक टाइम कैप्सूल डालवाई थी। लेकिन इस टाइम कैप्सूल में दर्ज की गई जानकारियाँ जल्द ही विवाद का विषय बन गईं। सत्ता में आई मोरार जी देसाई सरकार ने इस टाइम कैप्सूल को खुदवाकर बाहर निकालवा लिया। लेकिन इसके बाद भी टाइम कैप्सूल के बारे में विवाद बना रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने साल 2010 की छह मार्च को आईआईटी कानपुर में एक टाइम कैप्सूल को ज़मीन में डाला था। इस टाइम कैप्सूल में कानपुर आईआईटी का मैप, इंस्टीट्यूट की सील, सिल्वर जुबली और गोल्डन जुबली लोगो आदि शामिल था।

क्या-क्या रखा गया IIT Kanpur के टाइम कैप्सूल के अंदर

  • गोल्डन जुबली पर बनी आइआइटी की फिल्म।
  • संस्थान की 50 साल की तस्वीरें।
  • वार्षिक रिपोर्ट।
  • अध्यादेश और अधिनियमों की प्रति।
  • छात्र, छात्रावास, खाने का मेन्यू, लाइफ स्टाइल।
  • गोल्डन-सिल्वर जुबली का लोगो।
  • मिनी कंप्यूटर, पेन ड्राइव, सीडी।
  • सीनेट-बीओजी की बैठक के मिनट्स।
  • संस्थान का एरियल मैप।
  • बीटेक, एमटेक, पीएचडी कोर्स की डिटेल।
  • रिचर्स-प्रोजेक्ट कार्यों की जानकारी।
  • प्रेसीडेंट मेडल की प्रतिलिपि।
  • आइआइटी का झंडा।
  • संस्थान में चिडिय़ों की जानकारी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए महात्मा मंदिर में भी टाइम कैप्सूल डाला था। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या के राम मंदिर में ज़मीन से 2000 फीट नीचे ये टाइम कैप्सूल डलवाते हैं, तो वे ऐसा करने वाले दूसरे प्रधानमंत्री होंगे.

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